हाल ही में एक स्टडी में हैरान करने वाला खुलासा हुआ है, जिसने वैज्ञानिकों को भी चिंता में डाल दिया है. एक स्टडी के मुताबिक, Y क्रोमोसोम्स तेजी से कम होते जा रहे हैं, जो मनुष्यों में मेल जेंडर का निर्धारण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. दरअसल, पिछले 300 मिलियन वर्षों में इसने अपने मूल 1,438 जीनों में से 1,393 जीन खो दिए हैं, यानी केवल 45 जीन बचे हैं. जेनेटिक्स के प्रतिष्ठित प्रोफेसर और वाइस चांसलर के फेलो जेनिफर ए. मार्शल ग्रेव्स के मुताबिक, Y क्रोमोसोम का समय समाप्त हो रहा है. अगर ये सिलसिला जारी रहा तो Y क्रोमोसोम आने वाले 1.1 करोड़ सालों में पूरी तरह गायब हो सकते है. ऐसे में पुरुषों के पैदाइश पर बड़ा सवाल है.
दरअसल, पुरुष न सिर्फ जनसंख्या संतुलन में अहम भूमिका निभाते हैं, बल्कि वे उद्योग, व्यापार और तकनीकी विकास में भी बड़ी भागीदारी रखते हैं. आज की दुनिया की जीडीपी में पुरुषों का हिस्सा निर्णायक है. ILO (International Labour Organization) के आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया की कुल वर्कफोर्स में करीब 70% हिस्सा पुरुषों का है. ऐसे में अगर Y क्रोमोसोम खत्म हो गए तो क्या ग्लोबल इकोनॉमी टिक पाएगी?
पुरुषों का इकोनॉमी में योगदान
आज की तारीख में ग्लोबल इकोनॉमी में पुरुषों की भागीदारी निर्णायक है. ILO (International Labour Organization) के मुताबिक ग्लोबल वर्कफोर्स में पुरुषों की हिस्सेदारी करीब 72% है, जबकि महिलाओं की सिर्फ 47%. पुरुष उच्च उत्पादकता वाले सेक्टर्स (जैसे मैन्युफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन, टेक्नोलॉजी, फाइनेंस) में भारी संख्या में हैं.ये सेक्टर GDP के बड़े हिस्से में योगदान करते हैं.
OECD डेटा बताता है कि औसतन, पुरुष किसी भी देश की GDP में 60-75% तक का प्रत्यक्ष योगदान करते हैं, जबकि महिलाओं का योगदान 25-40% के बीच रहता है, जो मुख्यतः हेल्थ, एजुकेशन और सोशल वर्क सेक्टर्स में केंद्रित है.
अगर नहीं रहे मर्द तो…
अगर भविष्य में पुरुषों की संख्या में तेज गिरावट होती है, तो अर्थव्यवस्था पर कई स्तरों पर प्रभाव पड़ेगा:
- वर्कफोर्स गैप बढ़ेगा, जिससे उत्पादन और इनोवेशन पर असर होगा.
- जेंडर स्किल गैप के कारण कुछ इंडस्ट्रीज़ धीमी होंगी जिनमें भारी मशीनरी, खनन, ऊर्जा आदि शामिल हैं.
- फिजिकल लेबर से जुड़े सेक्टरों में ऑटोमेशन की जरूरत बढ़ेगी, जिससे नौकरियों का स्वरूप पूरी तरह बदल जाएगा.
क्या महिलाएं भर पाएंगी ये खाली जगह?
McKinsey Global Institute की 2020 की रिपोर्ट कहती है कि अगर महिलाओं को समान अवसर और हिस्सेदारी दी जाए, तो 2030 तक वैश्विक GDP में 28 ट्रिलियन डॉलर का इजाफा संभव है. यह तब होगा जब महिलाएं पुरुषों जितनी ही संख्या में और उतने ही स्तर पर वर्कफोर्स में हों.
स्वीडन, नॉर्वे जैसे देशों में महिलाओं की भागीदारी करीब 48% तक पहुंच चुकी है, और वहां पर जेंडर बेस्ड इकनॉमिक गैप कम होता दिख रहा है.भारत जैसे देशों में यह अंतर ज्यादा है पुरुषों की भागीदारी 76% और महिलाओं की महज 24% है.
भारत की ही बात करें तो, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के अनुसार, पुरुषों की वर्कफोर्स पार्टिसिपेशन रेट लगभग 77% है, जबकि महिलाओं की यह दर महज 25% के आसपास है. ऐसे में अगर वैज्ञानिक चेतावनी सच साबित होती है और आने वाले लाखों वर्षों में Y क्रोमोसोम लुप्त हो जाता है, तो समाज को न सिर्फ जैविक प्रजनन प्रणाली में बड़ा बदलाव लाना होगा, बल्कि इकोनॉमिक स्ट्रक्चर को भी पूरी तरह रीबिल्ड करना पड़ेगा.
टेक्नोलॉजी भले ही रिप्रोडक्शन का समाधान दे दे, लेकिन सप्लाई चेन, फिजिकल लेबर और नेतृत्व के कई रोल्स जो पुरुषों के वर्चस्व में रहे हैं, उन्हें फिर से परिभाषित करना होगा.